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सब ठीक तो हैं ना।

मुझे सपने भी तुम्हारे ही आते है.. रूह कांप उठती है जो उनमे कभी तुम्हारा बुरा हो.. दिल पूछने लगता है.. सब ठीक तो हैं ना। यू तो गहरी नींद में सोता हु मैं.. लेकिन जो तुम्हारा नाम कोई ले मेरे पास.. उठ कर पुछ बैठता हूँ.. सब ठीक तो हैं ना। मुस्कुरा कर बाते करने लगा हूँ सभी से.. जो कोई तुम्हारी खबर लादे कहीं से..  तुम्हारी ज़िक्र हो जब बातों में.. धड़कन पूछने लगती है... सब ठीक तो हैं ना। कभी रात को तो कभी सितारों को कहा है मैंने.. तुमसे मिलकर आने को.. नही देते जब वो जवाब.. तो जुगनूओं से पुछता हूँ मैं.. सब ठीक तो हैं ना। तुम्हारे शहर की हवाएं दगाबाज़ हैं.. नहीं देती अगर वो तुम्हारी खबर.. तो बादलो से पूछता हूँ मैं.. सब ठीक तो हैं ना। अक्सर नहीं होता ये.. हर पल होता है... मेरा दिल मुझसे..और में अपने दिल से.. पूछता हूं.. सब ठीक तो हैं ना। ✍✍आदित्य ठाकुर✍✍

Of course

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I am talking to myself Speaking out loud No one hears Of course, I am surrounded by many Trying to dissolve myself I can't No one cares Of course, I am walking on the streets Disconnected from environment Because No one shares Of course, I exist, oh yes, I do! For many But not inside one I want to say it But no one's here Of course. ✍✍ Aditya Thakur ✍✍

अच्छा लगता है।

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#6 अच्छा लगता है। जब तुम मुझे डांटती हो, मेरी गलतियों का हिसाब करती हो, मुझे उनका एहसास हो, ऐसी कोशिश बेहिसाब करती हो। अच्छा लगता है। यू ही दोस्तों की महफ़िल में जब, मैं खुद को भीड़ से दूर करता हूँ, अचानक तुम्हे अपने करीब पाकर, मैं जब खुद पर गुरूर करता हूँ। अच्छा लगता है। कभी जब मैं तुम्हारे सवालों पर सोचता हूँ, तुम्हारे रंग बिरंगे ख्वाबों पर सफर करता हूँ, तुम्हारी मासूमियत मेरे दिल के तारों को छूती है, जब तुम्हे मैं हक़ से अपना हमसफर कहता हूँ। अच्छा लगता है। मेरी जान, जब तुम मेरे करीब आती हो, हँसते-मुस्कुराते हुए मुझसे लिपट जाती हो, तुम्हारे होंठ मेरे होठों पर अपने निशान छोड़ जाते है, हमारे दिल, दिमाग को परे रख, समीप आते है। अच्छा लगता है। जब तुम प्रकृति की खूबसूरती को अपनाती हो, मुझमें, खुदको, खुदमें, मुझको दिखलाती हो, मेरा बिस्तर तुम्हारी खुसबू से महकता है, और मैं बिना नशे के बहकता हूँ। अच्छा लगता है। - ✍ ✍ आदित्य ठाकुर ✍

ये तुम्हारी मासूमियत है या ऐसे ही दिलो से खेलती हो तुम...!

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#5 ये तुम्हारी मासूमियत है या ऐसे ही दिलो से खेलती हो तुम...! मेरे एक सवाल पर तुम जो पूरा पैराग्राफ केह जाती हो । मेरे जरा से विषाद पर जो तुम दुनिया सर पर उठा लेती हो । ये तुम्हारी मासूमियत है या ऐसे ही दिलो से खेलती हो तुम...! मैं जो यूँ मुस्कुराता हूँ तुम्हे इसका कारण बताता हूँ । तुम जो ये खिलखिलाती हो, मुझे इसका कारण बताती हो। ये तुम्हारी मासूमियत है या ऐसे ही दिलो से खेलती हो तुम...! हम जब साथ चलते हैं, बिन कुछ कहे बाते करते हैं। तुम कहती हो, कि इसीलिए तो तुम्हे पसंद हूँ मैं। ये तुम्हारी मासूमियत है या ऐसे ही दिलो से खेलती हो तुम...! पहले तो तुम, अपनी परेशानियों को मेरे साथ बांटती हो। फिर मैं जो उन्हें अपनाऊ, तो मुझे रोकती हो। ये तुम्हारी मासूमियत है या ऐसे ही दिलो से खेलती हो तुम...! ये जो तुम दुनिया वालो से छुपती हो, मुझे शक है कि तुम डरती हो। और कभी तो अपनी आवाज सुनाने के लिए मुझसे कारण पूछती हो। ये तुम्हारी मासूमियत है या ऐसे ही दिलो से खेलती हो तुम...! - ✍ ✍ आदित्य ठाकुर ✍

कहा हो प्रिय?

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#4 कहा हो प्रिय? मित्र है, प्रेम है, प्रसंग भी है। कुछ दूर है कुछ संग भी है। पर दिल पूछ्ता है.. तुम कहा हो प्रिय! दास है, ख़ास है, सब आस पास है। कुछ जीवित है, कुछ लाश है। पर दिल पूछ्ता है.. तुम कहा हो प्रिय! समस्या है, निकट है, विकट है। आक्रोश है, पर बनावट है। तब दिल पूछ्ता है.. तुम कहा हो प्रिय! अश्रु है, आदर है, ग्लानि है। समझने से भी हानि है। पर दिल पूछ्ता है.. तुम कहा हो प्रिय! प्रतिज्ञा है, आज्ञा है, भक्ति है। तेरी उपस्थिती से सशक्ति है। तभी तो दिल पूछ्ता है.. तुम कहा हो प्रिय! ✍ ✍ आदित्य ठाकुर ✍

ख्वाहिश-बंदिश

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#3 दरअसल तुम्हे चाहने की ख्वाहिश बहुत है, पर मेरे आगे बंदिश बहुत है। मैं भले तेरा नहीं, तेरी याद, मेरे दिल में सही। तुम्हे पाने की चाहत नहीं, मेरी शराफत हकीकत सही। तुम गुलाब की पंखुड़ी नहीं, कांटो में लिपटा प्यार सही। तेरे लिए मेरी त्याग यही, तेरे ह्रदय की आग सही। कहता हूं तुझसे, शुकुन हो तुम, मानो मेरी बात, जूनून हो तुम। परवाह किसकी और क्यूँ करू मैं, जान के लिए, जान ले लू मैं। दरअसल तुम्हे चाहने की ख्वाहिश बहुत है, पर मेरे आगे बंदिश बहुत है। ✍ ✍ आदित्य ठाकुर ✍ ✍

तुम्हारी याद है।

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#2 मेरी अधूरी कहानियों में, मेरी सभी नादानियों में तुम्हारी याद है। मेरी पुस्तकों के पृष्ठचिन्हों में, मेरी कॉपी के आखिरी पन्नो में तुम्हारी याद है। मेरी हर करवटों में, मेरे दरवाजे की आहटों में तुम्हारी याद है। फेसबुक के तस्वीरों में , उनपे लिखे शीर्षकों में तुम्हारी याद है। वर्ग के डेस्क के चित्रकारी में , साथ न बैठ पाने की लाचारी में तुम्हारी याद है। मेरी आलमारी के सजावटों में, मेरे बिस्तर के सिलवटों में तुम्हारी याद है। मेरी नापसन्दगी के बदलने में, मेरी पसंदगी के सुधरने में तुम्हारी याद है। मेरे अनकहे अर्ज़ में, मुझे रोकने वाले हर हर्ज़ में तुम्हारी याद है। मेरे मर्ज़ के सुधरने में, मेरे क़र्ज़ के उतरने में तुम्हारी याद है। मेरी रचनाओं के मुक्तकों में, मेरे लफ़्ज़ों के रावानियों में तुम्हारी याद है। मेरे चिन्हों के सुधरने में, मेरे अंदाज़ों के बदलने में तुम्हारी याद है। मेरे अहं के जाने में, इस व्यंग के आने में तुम्हारी याद है। मेरे आँखों से निकले स्याही में, उसे समझने की कश्मकश में तुम्हारी याद है। मेरी जिंदगी के फैसलों में, मेरे बढ़े हुए हौसलो में तुम्हारी या...