तुम्हारी याद है।

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मेरी अधूरी कहानियों में, मेरी सभी नादानियों में तुम्हारी याद है।
मेरी पुस्तकों के पृष्ठचिन्हों में, मेरी कॉपी के आखिरी पन्नो में तुम्हारी याद है।
मेरी हर करवटों में, मेरे दरवाजे की आहटों में तुम्हारी याद है।
फेसबुक के तस्वीरों में , उनपे लिखे शीर्षकों में तुम्हारी याद है।
वर्ग के डेस्क के चित्रकारी में , साथ न बैठ पाने की लाचारी में तुम्हारी याद है।
मेरी आलमारी के सजावटों में, मेरे बिस्तर के सिलवटों में तुम्हारी याद है।
मेरी नापसन्दगी के बदलने में, मेरी पसंदगी के सुधरने में तुम्हारी याद है।
मेरे अनकहे अर्ज़ में, मुझे रोकने वाले हर हर्ज़ में तुम्हारी याद है।
मेरे मर्ज़ के सुधरने में, मेरे क़र्ज़ के उतरने में तुम्हारी याद है।
मेरी रचनाओं के मुक्तकों में, मेरे लफ़्ज़ों के रावानियों में तुम्हारी याद है।
मेरे चिन्हों के सुधरने में, मेरे अंदाज़ों के बदलने में तुम्हारी याद है।
मेरे अहं के जाने में, इस व्यंग के आने में तुम्हारी याद है।
मेरे आँखों से निकले स्याही में, उसे समझने की कश्मकश में तुम्हारी याद है।
मेरी जिंदगी के फैसलों में, मेरे बढ़े हुए हौसलो में तुम्हारी याद है।
मेरी आदतों में, मेरो चाहतों में,मेरी राहतों में बस तुम्हारी याद है।

आदित्य ठाकुर

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