ख्वाहिश-बंदिश
#3
दरअसल
तुम्हे चाहने की ख्वाहिश बहुत है,
पर मेरे आगे बंदिश बहुत है।
मैं भले तेरा नहीं,
तेरी याद, मेरे दिल में सही।
तुम्हे पाने की चाहत नहीं,
मेरी शराफत हकीकत सही।
तुम गुलाब की पंखुड़ी नहीं,
कांटो में लिपटा प्यार सही।
तेरे लिए मेरी त्याग यही,
तेरे ह्रदय की आग सही।
कहता हूं तुझसे, शुकुन हो तुम,
मानो मेरी बात, जूनून हो तुम।
परवाह किसकी और क्यूँ करू मैं,
जान के लिए, जान ले लू मैं।
दरअसल
तुम्हे चाहने की ख्वाहिश बहुत है,
पर मेरे आगे बंदिश बहुत है।
✍✍आदित्य ठाकुर✍✍
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