कहा हो प्रिय?
कहा हो प्रिय?
मित्र है, प्रेम है, प्रसंग भी है।
कुछ दूर है कुछ संग भी है।
पर दिल पूछ्ता है..
तुम कहा हो प्रिय!
दास है, ख़ास है, सब आस पास है।
कुछ जीवित है, कुछ लाश है।
पर दिल पूछ्ता है..
तुम कहा हो प्रिय!
समस्या है, निकट है, विकट है।
आक्रोश है, पर बनावट है।
तब दिल पूछ्ता है..
तुम कहा हो प्रिय!
अश्रु है, आदर है, ग्लानि है।
समझने से भी हानि है।
पर दिल पूछ्ता है..
तुम कहा हो प्रिय!
प्रतिज्ञा है, आज्ञा है, भक्ति है।
तेरी उपस्थिती से सशक्ति है।
तभी तो दिल पूछ्ता है..
तुम कहा हो प्रिय!
✍✍आदित्य ठाकुर✍
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