ये तुम्हारी मासूमियत है या ऐसे ही दिलो से खेलती हो तुम...!
#5 ये तुम्हारी मासूमियत है या ऐसे ही दिलो से खेलती हो तुम...! मेरे एक सवाल पर तुम जो पूरा पैराग्राफ केह जाती हो । मेरे जरा से विषाद पर जो तुम दुनिया सर पर उठा लेती हो । ये तुम्हारी मासूमियत है या ऐसे ही दिलो से खेलती हो तुम...! मैं जो यूँ मुस्कुराता हूँ तुम्हे इसका कारण बताता हूँ । तुम जो ये खिलखिलाती हो, मुझे इसका कारण बताती हो। ये तुम्हारी मासूमियत है या ऐसे ही दिलो से खेलती हो तुम...! हम जब साथ चलते हैं, बिन कुछ कहे बाते करते हैं। तुम कहती हो, कि इसीलिए तो तुम्हे पसंद हूँ मैं। ये तुम्हारी मासूमियत है या ऐसे ही दिलो से खेलती हो तुम...! पहले तो तुम, अपनी परेशानियों को मेरे साथ बांटती हो। फिर मैं जो उन्हें अपनाऊ, तो मुझे रोकती हो। ये तुम्हारी मासूमियत है या ऐसे ही दिलो से खेलती हो तुम...! ये जो तुम दुनिया वालो से छुपती हो, मुझे शक है कि तुम डरती हो। और कभी तो अपनी आवाज सुनाने के लिए मुझसे कारण पूछती हो। ये तुम्हारी मासूमियत है या ऐसे ही दिलो से खेलती हो तुम...! - ✍ ✍ आदित्य ठाकुर ✍